अहिल्या ने प्रभु राम का
रखा था मन
उठ खड़ी हुई थी ससम्मान।
त्याग कर अपना आत्मसम्मान,
धन्य प्रभु आपने दिया
संघर्षमय जीवन का वरदान।
अतः हर युग में करना पड़ा
अहिल्या को विषपान।
कभी जली है
कभी लुटी है
फिर भी देती रही
हर युग में जीवन दान।
वह पाषाण नहीं
जड़ हो गई थी।
पाकर प्रेम का ज्ञान।
हर युग में शापिता कही गई
रखने को विधाता का मान।