Sunday 12 June 2011

आतंकवाद

हर तरफ कोलाहल और
हर तरफ है क्रंदन
जातीयता के नाम पर
हो रहा हर तरफ़
लहू का है मंथन
कब बहेगा किसका लहू
है हर मानव भयभीत
हो रही अब तो बस
आतंकवाद की जीत !
                     " पत्थर का दर्द "

आस के दीये

आस के दीये
कुछ इस क़दर
दिल में जलाये हैं
कि,
दिल में
फफोले से निकल आये हैं
अब तो,
दिल के धड़कने से भी दर्द होता है
अहसास भी कहीं दूर
मुँह छिपा कर
रोता है !

Sunday 5 June 2011

इंतज़ार

वो जो कहते थे उम्र भर
हम इंतज़ार करेंगे,
मेरी तनहाई भी आकर
वही सवाल करेगी।
रात दिन मैंने दुआ में
जिसको माँगा था,
वो न मिला अपनी कि़स्मत है
हम खुदा से क्या मलाल करेंगे।
वो जोकारते हैं दुआ
रात-दिन मेरे मरने की,
वही आकर मेरी मज़ार को
आंसुओं से धोया करेंगे ।
कुछ तो तकदीर का रोना है
कुछ अपनों नें ज़ख्म दिए हैं,
चोट अपनों से मिली है
गैरों से हम क्या मलाल करेंगे !
ज़िंदगी इतनी हुई है बद्तर
की हम मौत का इंतज़ार करेंगे,
अब अज़ीज़ के हाथों में है ख़ंजर
अब ग़ैर क्या हलाल करेंगे।

ताड़ के वृक्ष

एकाग्रचित,
अविचल,
आलिंगनबद्ध,
वर्षों के अन्तराल में भी
आया नहीं कोई अंतर,
उगते रवि ने भी
जिसका नमन किया
डूबते हुए भी जिसने
उसे अलविदा किया,
नित्य हसरत से
निहारता रहा जिसे
निशा राही शशि भी,
हवाएं भी
जिनके मघ्य
जगह न बना सकीं
सावन की फुहारें भी
जिन पर सिहर कर गिरती हैं,
वसंत भी जिनपर
हुलस के आता है,
ओस की बूंदें
जिनकी प्यास बुझाती हैं,
वो सुदूर खड़े
दो ताड़ के वृक्ष,
मुझे जनम-जनम के
प्रेमी युगल की
याद दिलाते हैं |
-"पत्थर का दर्द"