मैं अपने कमरे के
जालों को
साफ़ नहीं करती
मकड़ों को नहीं मारती
छिपकली को नहीं भगाती
क्यूंकि.....
इस सफ़ेद
कफ़न-सी
चारदीवारी में
मुझे,
इनके होते
अकेलेपन का
अहसास नहीं होता,
मुझे अपनी तनहाई का
आभास नहीं होता,
इनके होते
मेरे दिल को
राहत मिलती है,
मुझे महसूस होता है
जैसे...............
मेरी तनहाई गा रही है
मेरा दर्द गुनगुना रहा है
यूँ हीं................
कभी दिल जब
बहुत उदास होता है
मेरे कमरे में स्तब्धता छाई रहती है
दीवारों से रीसता स्नेह
मेरी बंद होती धड़कन में
घड़ी की टिक-टिक
वक़्त के...............
जीवंत होने का
अहसास करा देती है|
दीवार पर टँगी
पापा की तस्वीर,
मुझे मेरे अस्तित्व का
अहसास दिला देती है|
-पत्थर का दर्द
जालों को
साफ़ नहीं करती
मकड़ों को नहीं मारती
छिपकली को नहीं भगाती
क्यूंकि.....
इस सफ़ेद
कफ़न-सी
चारदीवारी में
मुझे,
इनके होते
अकेलेपन का
अहसास नहीं होता,
मुझे अपनी तनहाई का
आभास नहीं होता,
इनके होते
मेरे दिल को
राहत मिलती है,
मुझे महसूस होता है
जैसे...............
मेरी तनहाई गा रही है
मेरा दर्द गुनगुना रहा है
यूँ हीं................
कभी दिल जब
बहुत उदास होता है
मेरे कमरे में स्तब्धता छाई रहती है
दीवारों से रीसता स्नेह
मेरी बंद होती धड़कन में
घड़ी की टिक-टिक
वक़्त के...............
जीवंत होने का
अहसास करा देती है|
दीवार पर टँगी
पापा की तस्वीर,
मुझे मेरे अस्तित्व का
अहसास दिला देती है|
-पत्थर का दर्द