Tuesday 24 April 2012

क्या लिखूँ मैं!


कभी सोचती हूँ
कविता या कोई
कहानी लिखूँ मैं
या फिर रीसते हुए
ज़ख्मों की
जुबानी लिखूँ मैं!
कभी देखी थी
महफ़िल
क़हकहों की
अब क्या
आँसुओं की
जुबानी लिखूँ मैं!
झूठे वादों
और फ़रेबों की
इस दुनियाँ में
कैसे कोई कहानी
रूमानी लिखूँ मैं!
या फिर
उपहार स्वरूप
मिली हुई
इस दर्द की
निशानी लिखूँ मैं!
क्या अब भी
कोई कविता
या........
कोई कहानी
लिखूँ मैं?
           सुनीता 'सुमन'

Sunday 22 April 2012

माँ का कर्ज


मैं उन रातों का हिसाब तो नहीं दे सकती
जो तुमने मेरे लिए जाग कर बिताई होगी
बस इतनी सी कामना है ईश्वर से कि,
वो तुम्हें मेरे हिस्से कि
थोड़ी सी सुकून की नींद दे-दें,
मैं उन स्नेह का, दुलार का
मूल्य  भी नहीं चुका सकती
जो तुमने मेरे मचलने
और मेरे इतराने पर भी
बरसाया होगा।
अब, इतनी सी कामना है ईश्वर से
कि, वो मुझे तेरा साथ कुछ पल और दे-दें।
मुझे आज भी याद है
कि, मैंने कभी हठ से
कभी मनुहार से
अपनी मनमानी पूरी करवाई है
अब, बस इतनी सी हसरत है
कि, ईश्वर मुझे तेरा साथ
कुछ क्षण और दे-दें।
यह जानती हूँ की
नई कोपलों के लिए
पुराने को जगह रिक्त करनी ही होती है।
पर, माँ ......
मुझे ये जीवन
कभी जेठ बन जलता है
कभी पूस बन ठिठुरता है
पर तेरी गोद
मुझे आज भी
छाँव देती है,
तेरा आँचल
मुझे पूस से बचाता है।
अब बस इतनी सी
आरजू है ईश्वर से
की, तेरी छाँव
कुछ पल और दे-दें।
कभी मिले जो ईश्वर
तो मैं, हक़ से पूछूंगी
की,
जेठ और पूस की तरह
तू बसंत भी क्यूँ बनता है।

Thursday 19 April 2012

सवाल २


अपने सपने अपने अरमानो को रख के ताख पे हम चुपचाप निकल जाते हैं,
फिर फिर न जाने क्यूँ हम ही बेरहम जमाने के निशाने पे आ जाते हैं !

सवाल

अक्सर मेरी तनहाई मुझसे ये सवाल दुहराती है,
जब मैं तेरे साथ हूँ फिर तुझे किसी और की जरुरत क्यूँ पड़ जाती है ?

आदित्य


आदित्य है बड़ा बेरहम
सारा दिन जलाता है,
सैन्झ ढले जाते-जाते
अँधेरे का साम्रज्य छोड़ जाता है।
निशा के घन तं में
साडी रत भटक क्र भी
शशी तन्हा रह जाता है
किन्तु जाते-जाते भी वह
एक न्य सवेरा छोड़ जाता है।
इनके बिच है गोधुली बेला
जो आगत विगत से अनजान
दो पल की खुमारी में
तन्हा डूबा रह जाता है।

Sunday 8 April 2012

तनहाई-२


फिर से उपवन महक आई है,
फिर कोई कली खिलने को अकुलाई है,
ये किसने दिया है दस्तक,
ये किसकी आहट आई है,
फिर मन पुलकित हुआ है,
फिर अलकों पे घटा छाई है,
आज फिर कोयल ने कुक लगाई  है,
आज फिर महुआ से महक आई है,
आज फिर रिक्त हुआ है कोई,
आज फिर नव किसलय दल छाई है,
आज फिर हवा से कुण्डी खड़की है,
आज फिर फिर मेरे द्वार पे तनहाई है।

मेरा शहर


अजीब सा है ये शहर कुछ
परेशान यहाँ हर शहरी है,
कौन सुनेगा अब दिल की
यहाँ दीवारें भी बहरी हैं,
कोई नहीं आता है अब
मेरे तनहाई के डेरे में,
तनहा ही रहते हैं अब
हम अरमानों के घेरे में,
उनसे दिल की कहनी चाही
जो शायद मेरे अपने थे,
आँख खुली सब टूट गया
वो सब, झूठे सपने थे।