मैं उन रातों का हिसाब तो नहीं दे सकती
जो तुमने मेरे लिए जाग कर बिताई होगी
बस इतनी सी कामना है ईश्वर से कि,
वो तुम्हें मेरे हिस्से कि
थोड़ी सी सुकून की नींद दे-दें,
मैं उन स्नेह का, दुलार का
मूल्य भी नहीं चुका सकती
जो तुमने मेरे मचलने
और मेरे इतराने पर भी
बरसाया होगा।
अब, इतनी सी कामना है ईश्वर से
कि, वो मुझे तेरा साथ कुछ पल और दे-दें।
मुझे आज भी याद है
कि, मैंने कभी हठ से
कभी मनुहार से
अपनी मनमानी पूरी करवाई है
अब, बस इतनी सी हसरत है
कि, ईश्वर मुझे तेरा साथ
कुछ क्षण और दे-दें।
यह जानती हूँ की
नई कोपलों के लिए
पुराने को जगह रिक्त करनी ही होती है।
पर, माँ ......
मुझे ये जीवन
कभी जेठ बन जलता है
कभी पूस बन ठिठुरता है
पर तेरी गोद
मुझे आज भी
छाँव देती है,
तेरा आँचल
मुझे पूस से बचाता है।
अब बस इतनी सी
आरजू है ईश्वर से
की, तेरी छाँव
कुछ पल और दे-दें।
कभी मिले जो ईश्वर
तो मैं, हक़ से पूछूंगी
की,
जेठ और पूस की तरह
तू बसंत भी क्यूँ बनता है।