Thursday 13 October 2011

" रिक्शावाला "

उसकी हिमाकत तो देखो
लगता है अब उसकी भी शामत आई है,
उसने मुखिया के खिलाफ
रेप केस दर्ज करवाई है,
अब उसके भी घर फ़ाके पड़ेंगे,
अब उसके भी बच्चे दर-दर भटकेंगे,
देता है बूढ़ा बाप भी घर-घर जा कर दुहाई,
हो जाये शायद कहीं उसकी भी सुनवाई ।
चला था अपने हिस्से की माँगने कमाई !!
लोगों ने पूछा........
क्या तू है पैसे वाला ?
रो कर कहा था उसने.....
पसीना समझ कर
नित्य बहाता हूँ आपना खून,
तब कहीं जाकर पता हूँ रोटी दो जून ।
करता हूँ मसक्कत
नित्य सूर्योदय से सूर्यास्त तक,
या फिर समझ लें
जन्म से मृत्यु तक ।
नित्य शुरू होकर ख़त्म हो जाती है
अपनी राम कहानी ।
खा कर सूखे चने
पी कर ठंडा पानी ।
जेठ, बैसाख में मांग लेता हूँ
पवन देव से ठंडी वायु,
देकर अपनी आयु ।
मेरी क्या बिसात कि,
बाबुओं पर झाडूं ताव
जबकि पूस में तापता रहता हूँ
बनाकर अपनी देह को अलाव ।
इन बेजान टांगों पर
खींचता हूँ नित्य इंशानियत का बोझ
मै कैसे कहूँ,
मैं हूँ पैसे वाला
मैं तो हूँ बस एक रिक्शावाला ।।
                         सुनीता 'सुमन'
                                            "पत्थर का दर्द"

Wednesday 12 October 2011

" गणेश का महत्व "


मैंने देखा है
हाट में बिकते........
पिंज़ड़े में बंद
तोते को !
और लोगों को,
मोल भाव करते हुए
और फिर
अपने घर के
अहाते में
टांगते हुए ।
मैंने देखा
गणेश जी को
मंदिरनुमा पिंजड़े में
बंद कर
सुनहरे कलेवर से सजाकर
हाट में बिकते हुए,
लोग उन्हें भी
मोल भाव कर
खरीद लाते हैं,
अपने घर के
प्रवेश द्वार पर टांगने के लिए ।
इस आस में की,
साथ गणेश के
लक्ष्मी भी चली आयें
शायद.......
दाहिनी ओर विराजने के लिए
या,...शायद,.....
अपने घर
शुभ,
शांति और
संपदा,
लाने के लिए ।
आजकल हर भाव में बिकते हैं
गणेश !!
असमर्थों के लिए महज़ दस रुपय में,
और समर्थों के लिए............
सहज सौ रुपय में,
किन्तु,
आज-कल हर घर में
सहज उपलब्ध हैं गणेश
अदृश्य रूप में
लक्ष्मी के साथ
या फिर,
शुभ,
शांति और
अदृश्य संपदा के साथ ।।
                          सुनीता 'सुमन'
                          "पत्थर का दर्द"            

Tuesday 11 October 2011

प्यार


प्यार हो ज़िन्दगी में तो,
जीवन बेहतर हो जाता है ।
चंद दीवारों के अन्दर,
एक घर हो जाता है ।
प्यार की दीवारें होती फिर,
ख़ुशी नींव का पत्थर हो जाता है ।
हर वो गरदन अकड़ रही है,
जो आस लगे रह जाता है ।
साथ मिले गर साथी का तो,
जीवन खुशगवार हो जाता है ।
प्यार का कद जो सदा बढ़े,
ग़म का चादर छोटा पड़ जाता है ।.
                               सुनीता 'सुमन'
                               "पत्थर का दर्द"

Sunday 9 October 2011

रावण का अंत

शायद हमारे बीच रावण
आज भी पल रहा है,
तभी तो उसका पुतला
आज भी जल रहा है,
फैला है दसो दिशाओं में
उसका सिर,तभी तो,
आज विभीषण का न होना
हम सब को खल रहा है।
आखिर कौन है ये रावण
जिसे प्रतिवर्ष जलाया जाता है,
फिर भी,दिन प्रतिदिन
इसका कद और बढ़ता जाता है।
आज अपने ही हाथों
हमारी अपनी लाज है
क्योंकी,अब यहाँ हर ओर
रावणी वृत्ति का राज है ।
आशातुर है हर एक दृष्टि
कब लेगा कल्कि अवतार,
और, कर डालेगा
इस रावण का संहार ।।
            सुनीता 'सुमन'
                  "पत्थर का दर्द"