Saturday 12 May 2012

बेटियाँ


युग -युगान्तर से
यही प्रथा चली आ रही है
बेटे घर का चिराग
और बेटियां....
पराया धन कही जा रही हैं,
बेटे गर वंश-बेल हैं
तो बेटियां......
हाथों की कठपुतलियों का खेल हैं,
बेटों के लिए.....
हाथों में चाबुक,
घोड़े की सवारी,
और बेटियां......
जैसे बिन मांगी महामारी,
ना जाने ये परम्परा
कब तक चलेगी,
बेटों को जन्म देने वाली बेटियां
कब तक जलेगी ?